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लड़ाई का अंत कमीशन की रिपोर्ट प्रकाशित होने के कुछ ही समय बाद जिस कानून के द्वारा समझौता होनेवाला था, उसका मसौदा यूनियन गजट में प्रकाशित हुआ। इस मसौदे के प्रकाशित होते ही मुझे केपटाउन जाना पड़ा। यूनियन पार्लियामेन्‍ट की बैठक वहीं होनेवाली थी, वहीं होती है। उस बिल में नौ धारायें थीं। वह सारा बिल 'नवजीवन' के दो कालम में छप सकता है। उसके एक भाग का सम्‍बन्‍ध हिन्‍दुस्‍तानी स्‍त्री-पुरूषों के विवाहों से था। उसका आशय यह था कि जो विवाह हिन्‍दुस्‍तान में कानूनी माने जायं, वे दक्षिण अफ्रीका में भी कानूनी माने जाने चाहिये। परन्‍तु एक से अधिक पत्नियां एक ही समय में किसी की कानूनी पत्नियां नहीं मानी जा सकतीं। बिल का दूसरा भाग तीन पौंड के उस कर को रद करता था, जो गिरमिट पूरी होने के बाद स्‍वतंत्र हिन्‍दुस्‍तानी के रूप में दक्षिण अफ्रीका में बसना चाहनेवाले प्रत्‍येक गिरमिटिया मजदूर को प्रतिवर्ष देना पड़ता था। बिल के तीसरे भाग में उन प्रमाणपत्रों के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया था, जो दक्षिण अफ्रीका में रहनेवाले हिन्‍दुस्‍तानियों को मिलते थे। अर्थात्‍ उस भाग में यह बताया गया था कि जिन हिन्‍दुस्‍तानियों के पास ऐसे प्रमाणपत्र हों, उनका दक्षिण अफ्रीका में रहने का अधिकार किस हद तक सिद्ध होता है। इस बिल पर यूनियन पार्लियामेन्‍ट में लम्‍बी और मीठी चर्चा हुई। दूसरी जिन बातों के लिए कानून बनाना जरूरी नहीं था, उन सबकी स्‍पष्‍टता जनरल स्‍मट्स और मेरे बीच हुए पत्र-व्‍यवहार में की गई थी। उसमें निम्‍न-लिखित बातों की स्‍पष्‍टता की गई थी : केप कॉलोनी में शिक्षित हिन्‍दुस्‍तानियों के प्रवेश-अधिकार की रक्षा करना, खास इजाजत पाये हुए शिक्षित हिन्‍दुस्‍तानियों को दक्षिण अफ्रीका में प्रवेश करने देना, पिछले तीन वर्षों में (१९१४ से पहले) दक्षिण अफ्रीका में प्रवेश कर चुके शिक्षित हिन्‍दुस्‍तानियों का दरजा तय करना और जिन हिन्‍दुस्‍तानियों ने एक से अधिक स्त्रियों से विवाह किया हो उन्‍हें अपनी दूसरी पत्नियों को दक्षिण अफ्रीका में लाने की इजाजत देना। इन सब प्रश्‍नों से सम्‍बन्‍ध रखनेवाले जनरल स्‍मट्स के पत्र में एक और बात भी जोड़ी गई थी : ''मौजूदा कानूनों के बारे में यूनियन सरकारने हमेशा यह चाहा है और आज भी वह चाहती है कि इन कानूनों का अमल न्‍यायपूर्ण ढंग से और आज जो अधिकार भोगे जा रहे हैं उनकी रक्षा करके ही हो।'' यह पत्र ३० जून, १९१४ को मुझे लिखा गया था। उसी दिन मैंने जनरल स्‍मट्स को जो पत्र लिखा, उसका आशय इस प्रकार था : ''आज की तारीख का आपका पत्र मुझे मिला है। आपने धैर्य और सौजन्‍य के साथ...पूरी सामग्री पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें संस्‍कृति गौतम बुद्ध का परिष्‍कार : करुणामूलक सामाजिक व्‍यवस्‍था रजनीश कुमार शुक्ल भारत के आधुनिक इतिहासकारों ने यह माना है कि बुद्ध का पथ वैदिक-व्‍यवस्‍था के विरुद्ध विद्रोह था क्‍योंकि बुद्ध ने वेद-प्रतिपादित ईश्‍वरवाद, आत्‍मवाद और वर्ण-व्‍यवस्‍था के साथ-साथ यज्ञ का भी प्रतिरोध किया है। इसके लिए आधुनिक इतिहास के यूरण्‍ड-पंथी लेखकों के द्वारा यह प्रतिपादित किया गया कि चार वर्णों की अवधारणा दैवी सिद्धांत है और इसकी दिव्‍यता को अस्‍वीकार करके बुद्ध ने वेदों के आत्‍यन्तिक प्रामाण्‍य को अस्‍वीकार करते हुए समस्‍त वैदिक परंपरा को अस्‍वीकार कर दिया। परंतु यह सत्‍य का केवल एक भाग ही देखकर किया गया अभिकथन है। संपूर्ण सत्‍य यह है कि बुद्ध ने सनातन धर्म में काल-प्रवाह से आई विकृतियों का विरोध करते हुए धर्म के मूल स्‍वरूप को स्‍थापित करने का यत्‍न किया। उन्‍होंने किसी नए धर्म का प्रचार करने की अपेक्षा सनातन धर्म को ही पुनर्व्‍याख्‍यायित करने का कार्य किया है। सत्‍य, अहिंसा, करुणा और मैत्री जैसे मूल्‍यों को मानव मात्र के आचरण का आधाररूप धर्म स्‍थापित करना ही भगवान के धर्मोंपदेश का मूल उत्‍स है। यह प्राणी मात्र की तात्त्विक एकरूपता के प्रतिपादन के वैदिक पथ से अलग न होकर काल के प्रवाह के साथ आचरण में आई विकृतियों का प्रतिरोध है।व्याख्यान श्यामा प्रसाद मुकर्जीशैक्षणिक संस्थाओं मेंसाहित्‍य स्‍वामी विवेकानंदप्राण का आध्‍यात्मिक रूपकहानीमहेंद्र भीष्मतंग नजरप्रदीप श्रीवास्‍तवमेरे बाबू जीकविताविदुषी शर्मा"अभिलाषा"हाँ मैं अपनी फेवरेट हूँआलेखडॉ. उमेश चन्द्र तिवारीबाल साहित्य का वर्तमानआलोचनामृत्युंजयनंददुलारे वाजपेई : आलोचना के मानकों में उलटफेरविशेषडॉ. सर्वेश कुमार सिंहरामचरितमानस की दलित चेतनाहिंदीसमयडॉटकॉम पूरी तरह से अव्यावसायिक अकादमिक उपक्रम है। हमारा एकमात्र उद्देश्य दुनिया भर में फैले व्यापक हिंदी पाठक समुदाय तक हिंदी की श्रेष्ठ रचनाओं की पहुँच आसानी से संभव बनाना है। इसमें शामिल रचनाओं के संदर्भ में रचनाकार या/और प्रकाशक से अनुमति अवश्य ली जाती है। हम आभारी हैं कि हमें रचनाकारों का भरपूर सहयोग मिला है। वे अपनी रचनाओं को ‘हिंदी समय’ पर उपलब्ध कराने के संदर्भ में सहर्ष अपनी अनुमति हमें देते रहे हैं। किसी कारणवश रचनाकार के मना करने की स्थिति में हम उसकी रचनाओं को ‘हिंदी समय’ के पटल से हटा देते हैं। ISSN 2394-6687

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